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कुछ किंवदंतियाँ : कुछ सत्यकथाएँ

अरुण आठल्ये

ध्रुपद कहाँ समाप्त हुआ और ख्याल कहाँ शुरू हुआ, ख्याल-टप्पा, टप्पा-ठुमरी, ख्याल-ठुमरी, ठुमरी-ग़ज़ल में क्या अंतर है, उसे कैसे पहचाना जाए, इन उलझनों में बालगंधर्व नहीं पड़े।

शोध में वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण से जो रत्न हाथ लगे उनमें से कुछ आपके सामने रख रहा हूँ. केशव-नारायण के ‘संयुक्त मानापमान’ में आज भी गौरव से दिखाया जाने वाला चित्र देखें. आठ जुलाई १९२१ को ग्रांट रोड पर बालीवाला ग्रैंड थिएटर में यह प्रयोग हुआ. प्रयोग चालू रहते फ्लैशफोटो लेने की सुविधा उस समय मौजूद नहीं थी. तब इस एकमात्र और अभूतपूर्व अवसर की याद जनमानस में हमेशा के लिए बनी रहे इसके लिए चित्रकार पु.श्री. काळ्यांनी ने एक अभिनव युक्ति की. उन्होंने केशवराव और बालगंधर्व के उस उस भूमिका में दो अलग-अलग फोटो काटकर बाद में उन्हें आवश्यकतानुसार चिपकाया और पार्श्वभाग में तंबू का पर्दा बेमालूम ढंग से रंग दिया. उपरोक्त घटना पु.श्री. काळ्यांनी ने ही श्री. भालचंद्र पेंढारकर को एक मज़ाक के तौर पर बताई थी.

स्त्रीपात्र अभिनेता की लोगों की दृष्टि में कला की सर्वोच्च परीक्षा कौन सी है? तो निजी जीवन में भी स्त्रियों का उन्हें पहचान न पाना यह है. ‘बड़ौदा में चिमणाबाई रानीसाहिबा के पास जाकर वे बेमालूम ढंग से हल्दी-कुमकुम लेकर आए. गंधर्वों ने पान को चूना लगाते समय तर्जनी के बजाय अंगूठे का उपयोग किया तब केवल रानीसाहिबा ने उन्हें मन ही मन पहचाना’ आदि हाथीदांत की चतुराई की कहानियाँ गुजराती और मराठी रसिकों में अभी भी प्रचलित हैं. यह गुब्बारा गंधर्वों ने ही एक बार फोड़ा इसलिए अच्छा हुआ. उनके उद्गारों की छपी हुई चौखट बगल में दी गई है. गंधर्वों पर जो जो छपा वह सब अत्यंत भक्तिभाव से सहेज कर रखने वाले श्री. नारायणराव आवाड के संग्रह से यह कतरन प्राप्त हुई है.

गंधर्व-गोहर संबंध में भी असंख्य अफवाहें आज तक उड़ रही हैं. उनके संबंध का सटीक स्वरूप क्या था? गंधर्वों के और्ध्वदेहिक की हड़बड़ी क्यों की गई? उस डर के पीछे सत्य कितना? प्रवाद कितना? चित्र में दिखाए अनुसार गंधर्वों का गोहर से पंजीकरण पद्धति से विवाह हुआ था. उसे तीन साक्षीदार उपस्थित थे. गंधर्वों ने स्वयं इस ‘रजिस्ट्रार के प्रमाण पत्र’ की फोटो-कॉपी उनके निःसीम प्रशंसक गोपालराव मेहेंदळे के पास दी थी. गोपालराव ने वह अपनी सुविद्य कन्या सौ. अनुरोधा जोशी, नागपुर के पास एक सीलबंद पैकेट सहेज कर रखने के लिए दिया था, उसमें रखी थी. यह सीलबंद पैकेट खोला तब उसमें अन्य चीजों के साथ १४ जून १९५५ को बालगंधर्वों ने गोहरबाई को गंधर्व नाटक मंडली के सामान का तथा ‘स्वयंवर’, ‘द्रौपदी’ और ‘कान्होपात्रा’ इन नाटकों के प्रयोगों के अधिकार का जो ‘बक्षीसपत्र’ किया उसका असली दस्तावेज था. उपरोक्त दस्तावेज सब-रजिस्ट्रार के मुंबई के ऑफिस में १६ जनवरी १९५६ को ‘रजिस्टर’ हुआ. इस दस्तावेज पर दर्ज विवरण ध्यानपूर्वक देखने पर बाद के समय में हुए बहुत से विवाद निरर्थक सिद्ध होते हैं.

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